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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ३ गति आदि का अल्प-बहुत्व
विवेचन-रत्नकरण्ड के समान आचार्य के लिये जो पिटक (आचार करण्डक-- आचार की पेटी) हो, उसे 'गणिपिटक' कहते हैं। गणिपिटक के आचारांग से ले कर दृष्टिवाद तक बारह भेद कहे हैं । आचारांग सूत्र में श्रमण-निर्ग्रन्थों के अनेकविध आचार, गोचर (भिक्षा विधि), विनय विनयफल, ग्रहण, आसेवन शिक्षा आदि का वर्णन किया है । नन्दी सूत्र में अंग सूत्रों की प्ररूपणा 'मुत्तत्थो' इत्यादि गाथा पर्यन्त जानना चाहिये । गुरु महाराज द्वारा शिष्य को दी जाने वाली वाचना के विषय में बताया है कि सर्व-प्रथम मल सूत्र और उसका अर्थ मात्र कहना चाहिये । विशेष विस्तार से कहने में प्राथमिक शिष्यों को मतिसम्मोह न हो जाय, इसलिये प्रथम सूत्रार्थ मात्र कहना चाहिये । इसके बाद सूत्र को स्पर्श करने वाली-नियुक्ति (टीका आदि व्याख्या) सहित अर्थ कहना चाहिये । यह दूसरा अनुयोग है । तदनन्तर प्रसंगानुप्रसंग के कथन से सम्पूर्ण व्याख्या कहनी चाहिये । यह तीसरा अनुयोग है । मूल सूत्र का अनुकूल अर्थ के साथ संयोजन करना 'अनुयोग' कहलाता है । यह अनुयोग की विधि है।
गति आदि का अल्प-बहुत्व
६४ प्रश्न-एएसि णं भंते ! णेरइयाणं जाव देवाणं, सिद्धाण य पंचगइसमासेणं कयरे कयरे०-पुच्छा। ..
६४ उत्तर-गोयमा ! अप्पाबहुयं जहा बहुवत्तव्वयाए, अट्टगइ. समासअप्पाबहुगं च ।
भावार्थ-६४ प्रश्न-हे भगवन् ! नरयिक यावत् देव और सिद्ध, इन पांच गति के समुदाय में कौन जीव, किन जीवों से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
६४ उत्तर-हे गौतम ! प्रज्ञापना सूत्र के तीसरे बहुवक्तव्यता पद के अनुसार तथा आठ गति के समुदाय का भी अल्प-बहुत्व जानना चाहिये।
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