________________
गणिपिटक के भेद
६२ प्रश्न-कइविहे णं भंते ! गणिपिडए पण्णत्ते ?
६२ उत्तर-गोयमा ! दुवालसंगे गणिपिडए पण्णत्ते, तं जहाआयारो जाव दिठिवाओ।
कठिन शब्दार्थ--गणिपिडए--गणिपिटक--आचार्य की पेटी। भावार्थ-६२ प्रश्न-हे भगवन् ! गणिपिटक कितने प्रकार का कहा है ?
६२ उत्तर-हे गौतम ! गणिपिटक बारह अंग रूप कहा है । यथाआचारांग यावत् दृष्टिवाद ।
६३ प्रश्न-से किं तं आयारो ?
६३ उत्तर-आयारे णं समणाणं णिग्गंथाणं आयार-गोयर०एवं अंगपरूवणा भाणियव्वा जहा गंदीए जाव
"सुत्तत्थो खलु पढमो बीओ णिज्जुत्तिमीसओ भणिओ । तइओ य णिरवसेसो एस विही होइ अणुओगे।" भावार्थ-६३ प्रश्न-हे भगवन् ! आचारांग किसे कहते हैं ?
६३ उत्तर-हे गौतम ! आचारांग सूत्र में श्रमण-निर्ग्रन्थों का आचार, गोचर विधि (भिक्षाविधि) आदि चारित्र-धर्म की प्ररूपणा की गई है, नन्दीसूत्र के अनुसार सभी अंग सूत्रों का वर्णन जानना चाहिये, यावत्-“सुत्तत्थो खल पढमो" इस गाथा पर्यन्त । इस गाथा का अर्थ इस प्रकार है-सर्व प्रथम सूत्र का अर्थ कहना चाहिये, दूसरे में नियुक्ति मिश्रित अर्थ कहना चाहिये और फिर तीसरे में निरवशेष अर्थात् सम्पूर्ण अर्थ का कथन कहना चाहिये । यह अनुयोग (सूत्रानुसार अर्थ) की विधि है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org