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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ३ श्रेणियों के भेद और परमाणु की गति
चले जाते हैं, उसे 'ऋज्वायता श्रेणी' कहते हैं । इस श्रेणी के अनुसार जाने वाला जीव एक ही समय में गन्तव्य स्थान पर पहुँच जाता है।
२ एकतोवक्रा-जिस श्रेणी मे जीव, पहले सीधा जा कर फिर वक्र-गति प्राप्त करे (दूसरी श्रेणी में प्रवेश करे) उसे 'एकतोवका श्रेणी' कहते हैं । इसके द्वारा जाने वाले जीव को दो समय लगते हैं।
३ उभयतोवक्रा-जिस श्रेणी से जाता हुआ जीव, दो बार वक्र-गति करे। इस श्रेणी से जाने वाले जीव को तीन समय लगते हैं । यह श्रेणी ऊर्ध्वलोक की आग्नेयी (पूर्वदक्षिण के मध्य का कोण) दिशा से अधोलोक की वायव्य ( उत्तर-पश्चिम कोण) दिशा में उत्पन्न होने वाले जीव के होती है । पहले समय में वह आग्नेयी दिशा से नीचे की ओर आग्नेयी दिशा में जाता है । दूसरे समय में आग्नेयी दिशा से तिरछा पश्चिम की ओर दक्षिण-दिशा के-नैऋत्य कोण की ओर जाता है । तीसरे समय में वहाँ से तिरछा हो कर उत्तर-पश्चिम-वायव्य कोण की ओर जाता है । यह तीन समय की गति सनाड़ी अथवा उससे बाहर के भाग में होती है।
४ एकतःखा-जिस श्रेणी से जीव या पुद्गल सनाड़ी के बायें पक्ष से त्रसनाड़ी में प्रवेश करे और फिर असनाड़ी से जा कर उसके बायीं ओर वाले भाग में उत्पन्न होते हैं, उसे 'एकतःखा श्रेणी' कहते हैं । इस श्रेणी की एक ओर त्रसनाड़ी के बाहर का 'ख' अर्थात् आकाश आया हुआ है, इसलिये इसका नाम 'एकतःखा' हैं । इस श्रेणी में दो, तीन या चार समय की वक्र-गति होने पर भी क्षेत्र की अपेक्षा से इसे पृथक कहा है।
५ उभयतःखा-जीव, प्रसनाड़ी के बाहर से बायें पक्ष से प्रवेश कर के सनाड़ी से जाते हुए, दाहिने पक्ष में जिस श्रेणी से उत्पन्न होते हैं, उसे 'उभयतःखा श्रेणी' कहते हैं, क्योंकि उसको सनाड़ो के बाहर बायीं और दाहिनी ओर आकाश का स्पर्श होता है।
६ चक्रवाल-जिस श्रेणी से परमाणु आदि गोल चक्कर लगा कर उत्पन्न होते हैं।
७ अर्द्ध चक्रवाल-जिस श्रेणी से परमाणु आदि आधा चक्कर लगा कर उत्पन्न होते हैं, उसे 'अर्द्ध चक्रवाल' कहते हैं।
श्रेणियों के कथन के पश्चात् परमाणु-पुद्गलादि तथा जीवों की गति का वर्णन किया है । उनकी गति, श्रेणी के अनुमार होती है, विश्रेणी से नहीं होती।
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