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________________ भगवती सूत्र - २५ उ ३ श्रेणियों के भेद और परमाणु की गति ३२५५ या विश्रेणी ? ५९ उत्तर - हे गौतम! पूर्ववत् यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध पर्यन्त । ६० प्रश्न - रइयाणं भंते! किं अणुसेदिं गई पवत्तह, विसेटिं गई पत्त ? ६० उत्तर - एवं चैव एवं जाव वेमाणियाणं । " भावार्थ - ६० प्रश्न - हे भगवन् ! नैरयिक जीवों की अनुश्रेणी गति होती है या विश्रेणी ? ६० उत्तर - हे गौतम ! पूर्ववत्, यावत् वैमानिक पर्यन्त । ६१ प्रश्न - इमी से णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए केवड्या णिरयावासस्यसहस्सा पण्णत्ता ? ६१ उत्तर - गोयमा ! तीसं णिरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता, एवं जहा पढमसए पंचमुद्देसगे जव 'अणुत्तरविमाण' त्ति । भावार्थ - ६१ प्रश्न - हे भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितने लाख नरकावास कहे हैं ? ६१ उत्तर - हे गौतम! तीस लाख नरकावास कहे हैं, इत्यादि प्रथम शतक के पाँचवें उद्देशक के अनुसार, पावत् विमान पर्यन्त । Jain Education International विवेचन-श्रेणियों का वर्णन पहले किया गया है । अब दूसरी प्रकार से वर्णन मरते हुए श्रेणी के सात भेद बताये हैं। जिसके द्वारा जीव और पुद्गलों की गति होती है, उस आकाश-प्रदेश की पंक्ति को 'श्रेणी' कहते हैं । जीव और पुद्गल एक स्थान से दूसरे स्थान, श्रेणी के अनुसार ही जाते हैं । विश्रेणी : ( विरुद्ध श्रेणी) से गति नहीं होती । १ ऋज्वायता - जिस श्रेणी से जीव ऊर्ध्वलोक आदि से अधोलोक आदि में सीधे For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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