SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 563
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१९२. भगवती सूत्र-श. २४ उ. २४ वैमानिक देवों का उपपात भावार्थ-२५ यदि वह संज्ञो मनुष्य स्वयं जघन्य काल को स्थिति वाला हो, तो भी यही पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिये । अवगाहना रनि-पृथक्त्व और स्थिति वर्ष-पृथक्त्व शेष पूर्ववत् । स्थिति और संवेध इसका अपना है २ । २६-सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्टिईओ जाओ, एस चेव वत्तव्वया । णवरं ओगाहणा जहण्णेणं पंच धणुसयाई, उक्कोसेण वि पंचधणुसयाई । ठिई जहण्णेणं पुत्वकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी, सेसं तहेव जाव 'भवादेसो' त्ति । कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरोधमाई दोहिं पुव्वकोडीहिं अभहियाई, उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहिं पुवकोडीहिं अमहियाई, एवढ्यं कालं सेवेजा, एवइयं काल गइरागई करेजा ३। एए तिण्णि गमगा सव्वट्ठ सिद्धगदेवाणं । ® 'सेवं भंते ! सेवं भंते' ! ति भगवं गोयमे जाव विहरइ ® ॥ चवीसइमे सए चउवीसइमो उद्देसो समत्तो ॥ ॥ चउवीसइमं सयं समत्तं ॥ भावार्थ-२६ यदि वह संज्ञी मनुष्य, स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो, तो पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिये । अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष तथा स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि । शेष पूर्ववत, यावत् भवादेश पर्यंत । कालादेश से जघन्य और उत्कृष्ट दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है ३ । सर्वार्थसिद्ध के देव में ये तीन गमक ही होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy