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________________ - भगवती सूत्र-श. १८ उ. ३ मंज्ञीभूत असज्ञीभूत २६८३ कि कुछ मनुष्य नहीं जानते, नहीं देखते और आहार रूप से ग्रहण करते हैं तथा कुछ जानते हैं, देखते हैं और आहार रूप से ग्रहण करते हैं। व्यन्तर और ज्योतिषी देवों का कथन नरयिकों के समान जानना चाहिये। प्रश्न-वेमाणिया णं भंते ! ते णिज्जरापोग्गले किं जाणंति ६? . ८ उत्तर-गोयमा ! जहा मणुस्सा, गवरं वेमाणियादुविहा पण्णत्ता, तं जहा-माइमिच्छदिट्ठीउववण्णगा य अमाइसम्मंदिट्ठीउववण्णगा य । तत्थ णं जे ते माइमिच्छदिट्ठीउववण्णगा ते णं ण जाणंति ण पासंति आहारैति । तत्थ णं जे ते अमाइसम्मदिट्ठीउववण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-अणंतरोववण्णगा य परंपरोक्वण्णगा य । तत्थ णं जे ते अणंतरोववण्णगा ते णं ण जाणंति ण पासंति आहारैति । तत्थ णं जे ते परंपरोववण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पन्जत्तगा य अपजत्तगा य । तत्थ णं जे ते अपजत्तगा ते णं ण जाणंति, ण पासंति, आहारोंति । तत्थ णं जे ते पजत्तगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-उवउत्ता य अणुवउत्ता य । तत्थ णं जे ते अणुवउत्ता ते णं ण जाणंति ण पासंति आहारेति । तत्थ णं जे ते उवउत्ता ते णं जाणंति, पासंति आहारेंति। भावार्थ-८ प्रश्न-हे भगवन् ! वैमानिक देव उन निर्जरा पुद्गलों को जानते-देखते हैं और आहार रूप से ग्रहण करते है ? उत्तर-हे गौतम ! मनुष्यों के समान वैमानिक देव के विषय में भी जानना चाहिए । विशेष यह कि वमानिक देव दो प्रकार के हैं-१मायो-मिथ्यादृष्टि और २ अमायी-सम्यग्दृष्टि । जो मायो-मिथ्यादृष्टि देव हैं, वे निर्जरा के पुद्गलों को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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