________________
२६८२
भगवती सूत्र-श. १८ उ. ३ संज्ञीभूत असंज्ञीभूत
पासंति आहारेंति?
उत्तर-गोयमा ! मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सण्णीभूया य असण्णीभूया य । तत्थ णं जे ते असण्णीभूया ते ण जाणंति ण पासंति, आहारेति । तत्थ णं जे ते सण्णीभूया ते दुविहा पण्णत्ता तं जहा-उवउत्ता अणुवउत्ता य । तत्थ णं जे ते अणुवउत्ता ते ण जाणंति ण पासंति, आहारेति । तत्थ णं जे ते उवउत्ता ते जाणंति ३, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-अत्थेगइया ण जाणंति, ण पासंति, 'आहारेंति, अत्थेगइया जाणंति ३। वाणमंतरजोइसिया जहा णेरइया।
भावार्थ-७ प्रश्न-हे भगवन् ! मनुष्य, निर्जरा के पुद्गलों को जानते-देखते हैं और आहार रूप से ग्रहण करते हैं ? या जानते नहीं, देखते नहीं और आहार रूप से ग्रहण भी नहीं करते ?
. ७ उत्तर-हे गौतम ! कुछ मनुष्य जानते हैं, देखते है और आहार रूप से ग्रहण करते हैं और कुछ नहीं जानते, नहीं देखते परन्तु आहार रूप से ग्रहण करते हैं।
प्रश्न-हे भगवन् ! आपके इस कथन का क्या कारण है कि कुछ मनुष्य जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं, तया कुछ नहीं जानते, नहीं देखते परन्तु आहार रूप से ग्रहण करते हैं ?
उत्तर-हे गौतम ! मनुष्य दो प्रकार के कहे गये हैं। संज्ञीभूत और असंजीभूत । जो असंज्ञीभूत हैं, वे नहीं जानते, नहीं देखते, किन्तु आहार रूप से ग्रहण करते हैं । जो संजीभूत हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं। यथा--उपयुक्त और अनुपयुक्त । जो अनुपयुक्त हैं वे नहीं जानते, नहीं देखते, किन्तु आहार रूप से ग्रहण करते हैं । और जो उपयुक्त हैं, वे जानते हैं, देखते हैं और आहार रूप से प्रहण करते हैं। इसलिये हे गौतम ! ऐसा कहा गया है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org