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भगवती सूत्र - श. २४ उ २० पंचेन्द्रिय तिर्यत्रों की उत्पत्ति ३१४५
४७ प्रश्न - असुरकुमारे णं भंते! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोगिएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! केवड़० ?
४७ उत्तर - गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत्तट्टिईपसु, उक्कोसेणं पुव्वकोडी आउसु उववज्जइ । असुरकुमाराणं लद्धी णवसु वि गमपसु जहा पुढविकाइएस उववज्जमाणस्स, एवं जाव ईसाणदेवस्स तहेव . लद्धी । भवादेसेणं सव्वत्थ अट्ट भवग्गहणाई, उक्कोसेणं जहणेणं दोणि भवग्गणा । टिई संवेहं च सव्वत्थ जाणेज्जा ९ ।
भावार्थ - ४७ प्रश्न - हे भगवन् ! असुरकुमार जो पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ?
४७ उत्तर - हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न होता है । उसके नौ गमक में, पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होने वाले असुरकुमार की वक्तव्यतानुसार यावत् ईशान देवलोक पर्यन्त । भवादेश से सर्वत्र जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव होते हैं। स्थिति और संवेध सर्वत्र भिन्न-भिन्न है १ से. ९ ।
४८ प्रश्न - नागकुमारे णं भंते ! जे भविए ?
४८ उत्तर - एस चैव वत्तव्वया । णवरं ठिहं संवेहं च जाणेज्जा । एवं जाव थणियकुमारे ९ ।
भावार्थ - ४८ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि नागकुमार देव, पंचेन्द्रिय तिर्यंच में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले तिर्यंच में उत्पन्न होता है ? ४८ उत्तर - हे गौतम! यहाँ भी पूर्वोक्त बक्तव्यतानुसार है । स्थिति और सवेध भिन्न है । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त ।
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