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भगवती सूत्र-श. २४ उ. १८ तेइन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति
'सणिणमणुस्स' ति।
* 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति के ॥ चउवीसइमे सए अट्ठारसमो उद्देसो समत्तो ।। भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! तेइन्द्रिय जीव कहाँ से आ कर उत्पन्न होते हैं ?
१ उत्तर-बेइन्द्रिय उद्देशक के समान । विशेष में स्थिति और संवेध बेइन्द्रिय से भिन्न समझना चाहिये। तेजस्कायिकों के साथ तेइन्द्रियों का संवेध तीसरे गमक में उत्कृष्ट २०८ रात्रि-दिवस का और बेइन्द्रियों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट १९६ रात्रि-दिवस अधिक ४८ वर्ष होता है । तेइन्द्रियों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट ३९२ रात्रि दिवस होता है । इस प्रकार यावत् संज्ञी मनुष्य तक सर्वत्र जानना चाहिये।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-तेइन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होने वाले जीवों की स्थिति और तेइन्द्रिय जीवों की स्थिति को मिला कर संवेध कहना चाहिये । तेजस्कायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति तीन रात्रि-दिवस है। उसे चार भवों के साथ गुणा करने पर बारह रात्रि दिवस होते हैं । तेइन्द्रिय की उत्कृष्ट स्थिति ४९ रात्रि-दिवस है । उनको चार भवों के साथ गुणा करने से १६६ रात्रि-दिवस होते हैं । इन दोनों राशि को जोड़ने से २०८ रात्रि-दिवस होते हैं । यह तेजस्कायिक का ते इन्द्रिय के साथ तीसरे गमक का संवेध काल है ।
बेइन्द्रिय का संवेध चार भव की अपेक्षा ४८ वर्ष होते हैं और तेइन्द्रिय के चार भव का संवेध १९६ रात्रि-दिवस होता है। दोनों को मिलाने से १९६ रात्रि-दिवस अधिक ४८ वर्ष, बेइन्द्रिय के साथ तेइन्द्रिय का तीसरे गमक का संवेध काल होता है । तेइन्द्रिय का तेइन्द्रिय के साथ संवेध काल आठ भव का ३९२ रात्रि-दिवस होता है । इस प्रकार चतुरिन्द्रिय, असंनी तियंत्र, संज्ञी तिर्यंच, असंज्ञी मनुष्य और संज्ञी मनुष्य के साथ तीसरे गमक का संवेध काल जानना चाहिये । तीसरे गमक के संवेध काल के अनुसार छठे आदि
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