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________________ भगवती सूत्र-ग. २४ उ. १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति ३१०५ गमक भी हैं। स्थिति और कालादेश पहले से भिन्न जानना चाहिये । ५६ प्रश्न-ईसाणदेवे णं भंते ! जे भविए० ? ५६ उत्तर-एवं ईसाणदेवेण वि णव गमगा भाणियव्वा । णवरं ठिई अणुबंधो जहण्णेणं साइरेगं पलिओवमं, उक्कोसेणं साइरेगाई दो सागरोवमाई, सेसं तं चेव । 8 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' त्ति जाव विहरइ8 ॥ चवीसइमे सए दुवालसमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ-५६ प्रश्न-ईशानकल्पोपपन्नक देव जो पृथ्वीकायिकों में आवें, तो? ५६ उत्तर-इस विषय में भी पूर्ववत् नौ गमक हैं, स्थिति और अनुबन्ध जघन्य सातिरेक पल्योपम और उत्कृष्ट सातिरेक दो सागरोपम, शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। • विवेचन-सौधर्म देवलोक से बारहवें अच्युत देवलोक तक के देव 'कल्पोपपन्नक' कहलाते हैं । इससे आगे के देव 'कल्पातीत' कहलाते हैं । सौधर्म और ईशानं देवलोक से चव कर जीव पृथ्वीकाय में उत्पन्न हो सकता है । इससे आगे के देवलोकों से चव कर आया हुआ जीव, पृथ्वीकायादि में उत्पन्न नहीं होता। इसके गमकों की व्याख्या पूर्ववत् जाननी चाहिये। ॥ चौबीसवें शतक का बारहवां उद्देशक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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