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________________ ३१०४ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति __५४ प्रश्न-जइ कप्पोवगवेमाणिय० किं सोहम्मकप्पोवगवेमाणिय० जाव अच्चुयकप्पोवगवेमाणिय ? ५४ उत्तर-गोयमा ! सोहम्मकप्पोवगवेमाणिय०, ईसाणकप्पोवगवेमाणिय०, णो सणंकुमार० जाव णो अच्चुयकप्पोवगवेमाणिय० । ___भावार्थ-५४ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे कल्पोपपन्नक वैमानिक देवों से आते हैं, तो क्या सौधर्मकल्पोपपत्रक यावत् अच्युतकल्पोपपन्नक से आते हैं ? ५४ उत्तर-हे गौतम ! सौधर्म और ईशानकल्पोपपन्नक वैमानिक देवों से आते है, सनत्कुमार यावत् अच्युत कल्पोपपन्नक से नहीं आते । . ५५ प्रश्न-सोहम्मदेवे णं भंते ! जे भविए पुढविकाइएसु उववजित्तए, से णं भंते ! केवइय० ? ५५ उत्तर-एवं जहा जोइसियस्स गमगो। णवरं ठिई अणुबंधो य जहण्णेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं। कालादेसेणं जहण्णेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तमभहियं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाई बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाई-एवइयं कालं०, एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा, णवरं ठिई कालादेसं च जाणेजा। भावार्थ-५५ प्रश्न-हे भगवन् ! सौधर्मकल्पोपपन्नक वैमानिक देव, जो पृथ्वीकायिक में आता है, तो वह कितने काल की स्थिति में आता है ? ५५ उत्तर-हे गौतम ! ज्योतिषी देवों के गमक के समान, स्थिति और अनुबन्ध जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट दो सागरोपम । संवेध-कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक एक पल्योपम और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष अधिक दो सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है । इसी प्रकार शेष आठ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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