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________________ भगवती सूत्र - श. १८ उ. ३ पृथिव्यादि से मनुष्य हो, मुक्त हो सकते हैं पु णामं अणगारे पगइभद्दए जहा मंडियपुत्ते जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी - १ प्रश्न - से णूणं भंते! काउलेस्से पुढविकाइए काउलेस्से हिंतो पुढविकाइए हिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं लभइ, मा० २ भित्ता केवलं बोहिं बुझइ, के० २ बुज्झित्ता तओ पच्छा सिज्झइ, जाव अंतं करेइ ? Jain Education International २६७५ १ उत्तर - हंता मागंदियपुत्ता ! काउलेस्से पुढविकाइए जाव अंतं करे | २ प्रश्न-से पूर्ण भंते! काउलेसे आउकाइए काउलेसे हिंतो आउ काइए हिंतो अनंतरं उब्वट्टित्ता माणुसं विग्गहं लभइ, मा० २ लभित्ता केवलं बोहिं बुज्झइ, जाव अंतं करेइ ? २ उत्तर - हंता मागंदियपुत्ता ! जाव अंतं करेइ । .. ३- से णूणं भंते! काउलेस्से वणस्सइकाइए एवं चैव जाव अंतं करेइ | 'सेवं भंते ! सेवं भंते!' त्ति मागंदियपुत्ते अणगारे समणं भगवं महावीरं जाव णमंसित्ता जेणेव समणे णिग्गंथे तेणेव उवागच्छ्छ, उवागच्छित्ता समणे णिग्गंथे एवं वयासी - एवं खलु अज्जो ! काउलेस्से पुढविकाइए तहेव जाव अंत करेइ, एवं खलु अज्जो ! काउलेस्से आउ काइए जाव अंतं करेइ, एवं खलु अज्जो ! काउलेस्से वणस्सइकाइए जाव अंतं करेइ ।' तएणं ते समणा णिग्गंथा मागंदियपुत्तस्स अणगाररस For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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