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भगवती सूत्र - श. १८ उ. ३ पृथिव्यादि से मनुष्य हो, मुक्त हो सकते हैं
कर के यावत् काल के समय काल कर के सौधर्मकल्प में सौधर्मावतंसक विमान में रही हुई उपपात सभा के देवशयनीय में यावत् शक्र देवेन्द्र देवराजपने उत्पन्न हुआ | उत्पन्न हुआ शक्र देवेन्द्र देवराज इत्यादि सब वक्तव्यता गंगदत्त के समान कहनी चाहिये यावत् वह सभी दुःखों का अन्त करेगा । शक्र की स्थिति वो सागरोपम की है । शेष सब गंगदत्त के समान है ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है - ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
विवेचन - हस्तिनापुर में कार्तिक सेठ तो बाद में सेठ हुए, परन्तु गंगदत्त पहले से श्रेष्ठी बने हुए थे । इनमें परस्पर प्रायः ईर्षाभाव रहता था। दोनों ने भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी के पास दीक्षा ली थी। वहाँ से काल कर के कार्तिक सेठ का जीव शक्रेद्र बना और गंगदत्त का जीव सातवें महाशुक्र देवलोक में देव हुआ ।
॥ इति अठारहवें शतक का द्वितीय उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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शतक १५ उद्देशक ३
पृथिव्यादि से मनुष्य हो, मुक्त हो सकते हैं
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तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे होत्था । वण्णओ । गुगसिलए चेहए | वण्णओ । जाव परिसा पडिगया । तेणं कालेणं तेणं समरणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव अंतेवासी मार्गदिय
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