SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०६८ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १२ पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति ५ प्रश्न-से णं भंते ! पुढविकाइए पुणरवि 'पुढविकाइए' त्ति केवइयं कालं सेवेजा, केवड्यं कालं गइरागइं करेजा ? ५ उत्तर-गोयमा ! भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई, उक्को. सेणं असंखेन्जाई भवग्गहणाई कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता, उकोसेणं असंखेनं कालं-एवइयं जाव करेज्जा १ । भावार्थ-५ प्रश्न-हे भगवन् ! वे पृथ्वीकायिक मर कर पुनः पृथ्वीकाथिक हो, इस प्रकार कितने काल तक सेवन और गमनागमन करते हैं ? __ ५ उत्तर-हे गौतम ! भव की अपेक्षा जघन्य दो भव और उत्कृष्ट असंख्यात भव, काल की अपेक्षा जघन्य दो अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक यावत् गमनागमन करता है १ । ६-सो चेव जहण्णकालट्टिईएसु उववण्णो जहण्णेणं अंतोमुहत्तट्टिईएसु, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तट्टिईएसु-एवं चेव वत्तव्यया णिरवसेसा २। भावार्थ-६ यदि वह पृथ्वीकायिक जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्महूर्त की स्थिति वाले पथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है । इस प्रकार सम्पूर्ण वक्तव्यता जाननी चाहिये २। ७-सो चेव उक्कोसकालट्टिईएसु उपवण्णो, जहण्णेणं बावीसवाससहस्सट्टिईएसु, उकोसेण वि बावीसवाससहस्सट्टिईसु, सेसं तं चेव जाव 'अणुबंधो' चि । णवरं जहण्णेणं एको वा दो वा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy