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________________ भगवती सूत्र - श. २४ उ १२ पृथ्वी कायिक जीवों की उत्पत्ति कठिन शब्दार्थ- वक्कंतीए - व्युत्क्रान्ति - उत्पन्न होने सम्बन्धी प्रज्ञापना सूत्र का भावार्थ - २ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि पृथ्वीकायिक जीव तिर्यंच-योनिक से आते हैं, तो क्या एकेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक से आते हैं, इत्यादि प्रश्न । २ उत्तर - हे गौतम ! जिस प्रकार प्रज्ञापना सूत्र के व्युत्क्रान्ति नामक छठे पद के अनुसार यावत्- प्रश्न - हे भगवन् ! यदि वे बादर पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक से आते हैं, तो पर्याप्त या अपर्याप्त बादर पृथ्वीकायिक से आते हैं ? उत्तर - हे गौतम! वे पर्याप्त और अपर्याप्त दोनों प्रकार के बादर पृथ्वीकायिकों में से आते हैं । ३०६६ पद । ३ प्रश्न - पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए पुढविकाइएस उववज्जित्तए से णं भंते ! केवइयका लट्ठिईएस उववज्जेज्जा ? ३ उत्तर - गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तट्टिइएस, उक्कोसेणं वावीसवाससहस्सट्टिईएस उववज्जेजा । भावार्थ - ३ प्रश्न - हे भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न हो, वह कितने काल की स्थिति में उत्पन्न होता है ? ३ उत्तर - हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाला होता है । ४ प्रश्न - ते णं भंते ! जीवा एगसमपणं - पुच्छा | ४ उत्तर - गोयमा ! अणुसमयं अविरहिया असंखेज्जा उववज्जति । छेवसंघयणी | सरीरोगाहणा जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जहभागं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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