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भगवती सूत्र - श. २४ उ. २ असुरकुमारों का उपपात
अवगाहना जघन्य सातिरेक पांच सौ धनुष और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है, शेष सब पूर्ववत् । तीसरे गमक में अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ होती है, शेष सब तिर्यंच-योनिक के समान है ( १-२-३ ) |
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२१ - सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्ठिईओ जाओ. तस्स वि जहणकाल हियतिक्ख जोणियसरिसा तिष्णि गमगा भाणियव्वा । णवरं सरीरोगाहणा तिसु वि गमएसु जहण्णेणं साइरेगाई पंचधणुसयाई, उक्कोसेण वि साइरेगाई पंचधणुसयाई, सेसं तं चैव ६ |
भावार्थ - २१ - यदि वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो, तो उसके लिये जघन्य काल की स्थिति वाले तियंच-योनिक के तुल्य तीनों गमक जानना चाहिये । तीनों ही गमकों में शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट सातिरेक पांच सौ धनुष होती है । शेष सब पूर्ववत् ( ४ - ५ - ६ ) ।
२२ - सो चेव अप्पणा उकोसकालट्टिईओ जाओ, तस्स वि ते चैव पच्छिलगा तिणि गमगा भाणियव्वा । णवरं सरीरोगाहणा तिसु वि गमपसु जहण्णेणं तिष्णि गाउयाई, उक्कोसेण वि तिष्ण गाउयाई, अवसेसं तं चेव ९ ।
भावार्थ - २२ - यदि वह स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो, तो उसके विषय में भी पूर्वोक्त अन्तिम तीन गमक जानने चाहिये । तीनों ही गमकों में शरीर को अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है, शेष पूर्ववत् ( ७-८ - ९ ) ।
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