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________________ भगवती सूत्र-श. २४ उ. २ असुरकुमारों का उपपात ३०५३ ____ २३ प्रश्न-जइ संखेजवासाउयसण्णिमणुस्सेहिंतो उववज्जति किं पजत्तसंखेजवासाउय०, अपज्जत्तसंखेजवासाउय० ? २३ उत्तर-गोयमा ! पजत्तसंखेज०, णो अपजत्तसंखेन । ___भावार्थ-२३ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे असुर कुमार, संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञो मनुष्यों से आते हैं, तो पर्याप्त या अपर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं ? २३ उत्तर-हे गौतम ! वे पर्याप्त संख्यात वर्ष को आयुष्य वाले संज्ञी मनुष्यों से आते हैं, अपर्याप्त संशी मनुष्यों से नहीं आते । २४ प्रश्न-पजत्तसंखेजवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उवजित्तए से णं भंते ! केवइयकालढ़िईएसु उववज्जेज्जा ? __२४ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्टिईएसु, उक्कोसेणं साइरेगसागरोषमट्टिईएसु उववज्जेजा। भावार्थ-२४ प्रश्न-हे भगवन् ! पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुष्य वाला संज्ञी मनुष्य, असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? २४ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य दस हजार वष और उत्कृष्ट सातिरेक सागरोपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है। २५ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा० ? २५ उत्तर-एवं जहेव एएसिं रयणप्पभाए उववज्जमाणाणं णव गमगा तहेव इह वि णप गमगा भाणियव्वा । णवरं संवेहो साइरेगेण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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