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भगवती सूत्र - श. २४ उ. १ मनुष्यों का नरकोपपात
अधिक बारह सागरोपम होता है । जघन्य स्थिति वाले मनुष्य का जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होने रूप पाँचवें गमक में काय-सवेध -- काल की अपेक्षा जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार वर्ष पृथक्त्व अधिक चार सागरोपम होता है । इसी प्रकार छठा गमक भी उपयोग पूर्वक जानना चाहिये ।
सातवें, आठवें और नौवें गमक में शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष की है । इसी प्रकार दूसरे नानात्व भी समझ लेना चाहिये । तिर्यंच की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की कही गई थी, किन्तु मनुष्य गमकों में मनुष्य स्थिति का कथन करना चाहिये । शर्कराप्रभा आदि नरकों में जाने वाले मनुष्यों की स्थिति जघन्य वर्ष - पृथक्त्व और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की होती है ।
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१०५ प्रश्न - पज्जत्तसंखेज्जवासाज्यसष्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए असत्तमा पुढवि णेरइएस उववज्जित्तए से णं केवइयका लट्ठिईएस उववज्जेज्जा ?
भंते !
१०५ उत्तर - गोयमा ! जहणेणं बावीससागरोवमट्टिईएस, उकोसे तेत्तीससागरोवमट्टिईएस उववज्जेज्जा ।
भावार्थ - १०५ प्रश्न - हे भगवन् ! संख्येय वर्षायुष्क पर्याप्त संज्ञी पञ्चेन्द्रिय मनुष्य, जो अधः सप्तम पृथ्वी में नैरयिकपने उत्पन्न होने के योग्य है, वह feat काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ?
१०५ उत्तर - हे गौतम ! वह जघन्य बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ।
१०६ प्रश्न - ते णं भंते ! जीवा एगसम एणं० ?
१०६ उत्तर - अवसेसो सो चेव सकरप्पभापुढ विगमओ णेयव्वो । णवरं पढमं संघयणं, इत्यिवेयगा ण उववज्जंति, सेसं तं चेव, जाव 'अणुबंधो' चि । भवादेसेणं दोभवग्गहणाई । कालादेसेणं जहणणं
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