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________________ ३०३४ भगवती सूत्र - २४ उ १ मनुष्यों का नरकोपपात वि पुव्वकोडी, एवं अणुबंधो वि । सेसं जहा पढमगमए । वरं रइयठिई य कायसंवेहं च जाणेज्जा ७-८ - ९ । एवं जाव छट्टपुढवी । वरं तच्चाए आढवेत्ता एक्केक्कं संघयणं परिहायड़ जहेव तिखिखजोणियाणं । कालादेसो वि तहेव, णवरं मणुस्सट्टिई भाणियव्वा । भावार्थ - १०४ - यदि वह मनुष्य स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और शर्कराप्रभा में उत्पन्न हो, तो तीनों गमकों में विशेषता इस प्रकार है- शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष तथा स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि होती है, इसी प्रकार अनुबन्ध भी । शेष सब प्रथम गमक के समान । विशेषता यह है कि नैरयिक की स्थिति और काय संवेध तदनुकूल जानना चाहिये ( ७ - ८ - ९ ) । इसी प्रकार यावत् छठीं नरक पर्यन्त जानना चाहिये । विशेषता यह है कि तोसरी नरक से ले कर आगे तिर्यंच-योनिक के समान एक-एक संहनन कम होता है । कालादेश भी उसी प्रकार, परंतु स्थिति मनुष्य की कहनी चाहिये । विवेचन - दो रत्नि (हाथ ) से कम को अवगाहना वाले और दी वर्ष की आयुष्य से कम आयुष्य वाले मनुष्य, दूसरी शर्कराप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न नहीं होते । यहाँ पर जघन्य गमों में भी मनःपर्याय ज्ञान लिया है। इससे यह ध्वनित होता है कि दूसरी आदि नरक पृथ्वियों में जाने वाले में जघन्य आयुष्य भी चारित्र प्रायोग्य नव वर्ष के लगभग समझना चाहिए । पहले, दूसरे और तीसरे गमक में जो नानात्व कथन किया है, उनमें से प्रथम गमक में तो स्थिति आदि का निर्देश मूल पाठ में कर ही दिया गया है। दूसरे गमक औधिक मनुष्य की जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पत्ति का कथन किया गया है । वहाँ नैरयिक की स्थिति जघन्यं और उत्कृष्ट एक सागरोपम जाननी चाहिये । काल की अपेक्षा सवेधजघन्य वर्ष - पृथक्त्व अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम " होता है । तीसरे गमक में भी इसी प्रकार समझना चाहिये, किन्तु जघन्य तीन सागरोपम और उत्कृष्ट बारह सागरोपम है । जघन्य स्थिति वाले मनुष्य का औधिक नरक में उत्पन्न संवेध काल की अपेक्षा वर्ष - पृथक्त्व अधिक एक सागरोपम Jain Education International For Personal & Private Use Only इस चौथे गमक में चार वर्षं पृथक्त्व www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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