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________________ ३०३६ भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ मनुष्यों का नरकांपपात वावीसं सागरोवमाई वासपुहुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई पुब्बकोडीए अब्भहियाई-एवइयं जाव करेजा १ । भावार्थ-१०६ प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? . . . .. १०६ उत्तर-हे गौतम ! इसकी सभी वक्तव्यता शर्कराप्रभा के नैरयिक के समान जाननी चाहिये, विशेषता यह है कि सातवीं नरक में प्रथम संहनन वाले ही उत्पन्न होते हैं और वहाँ स्त्रीवेदो उत्पन्न नहीं होते। शेष सब यावत् अनुबन्ध तक पूर्ववत् । भवादेश से दो भव और कालादेश से जघन्य वर्ष-पृथक्त्व अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है १। १०७-सो चेव जहण्णकालढिईएसु उववण्णो-एस चेव वत्तव्वया । णवरं गेरइयट्टिई संवेहं च जाणेजा २। , १०७-यदि वह मनुष्य जघन्य स्थिति वाले सप्तम नरक पृथ्वी के , नरयिकों में उत्पन्न हो, तो भी पूर्वोक्त वर्णन जानना चाहिये, विशेष में नैरयिक को स्थिति और संवेध स्वयं जानना चाहिये २ । १०८-सो चेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो-एस चेव वत्तव्वया, णवरं संवेहं च जाणेजा ३। ___१०८-यदि वह मनुष्य उत्कृष्ट स्थिति वाले सप्तम नरक पृथ्वी के नरयिकों में उत्पन्न हो, तो भी यही वक्तव्यता है । संवेध स्वयं जानना चाहिये ३ । ___ १०९-सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्टिईओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु एस चेव वतन्वया। णवरं सरीरोगाहणा जहणणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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