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________________ भगवता सूत्र-श. २४ उ. ! मनुष्या का नरकोपपात ३०३१ विवेचन-संज्ञी मनुष्य सदा संख्यात ही होते हैं, इसलिये उत्कृष्ट रूप से उनकी उत्पत्ति संख्यात ही होती है । नरक में उत्पन्न होने वाले गर्भज मनुष्य में चार ज्ञान, तीन अज्ञान भनना से कहे गये हैं । इस विषय में चूणिकार का कथन यह है-'ओहिणाणमणपज्जव आहारयसरीराणिलदणं परिसाडिता उववज्जति अर्थात् जो मनुष्य अवधिज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान और आहारक शरीर प्राप्त करके बाद में वहाँ से गिर कर नरक में उत्पन्न होता है (यहां मनःपर्यत्र ज्ञान और आहारक शरीर उसकी पूर्व अवस्था की अपेक्षा समझना चाहिये अवधिज्ञान को तो साथ में लेकर तीसरी नरक तक उत्पन्न हो सकता है ) उस मनुष्य में चार ज्ञान और तीन अज्ञान विकल्प से लिये गये हैं। दो मास से कम की आयुष्य वाला मनुष्य नरक गति में नहीं जाता, इसलिये नरक गति में जाने वाले मनुष्य का जघन्य आयुष्य मास पृथक्त्व होता है । मनुष्य हो कर यदि नरक गति में उत्पन्न हो, तो एक नरक पृथ्वी में चार बार ही उत्पन्न होता है, उसके पश्चात् वह अवश्य तिर्यंच होता है । इसलिये मनुष्य-भव सम्बन्धी चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम सवेध काल कहा गया है। जघन्य स्थिति वाले मनुष्य के नरक में उत्पन्न होने सम्बन्धी चौथे गमक. में पांच नानात्व बतलाये गये हैं। प्रथम गमक में अवगाहना जघन्य अंगुल-पृथक्त्व और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष बतलाई गई है । यहां जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल-पृथक्त्व होती है । प्रथम गमक में चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से बतलाये गये हैं और यहां तीन ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से बतलाये गये हैं, क्योंकि जघन्य स्थिति वाले मनुष्य में इन्हीं का समाव होता है । प्रयम गमक में छह समुद्घात बतलाई गई है और यहां पांच बतलाई गई हैं, क्योंकि जघन्य स्थिति वाले मनुष्य के आहारक समुद्घात नहीं पाई जाती। प्रयम गमक में स्थिति ओर अनुबन्ध जघन्य मास-पृथक्त्व और उत्कृष्ट पूर्वकोटि बतलाया गया है और यहां जघन्य और उत्कृष्ट मास-पृथक्त्व ही बतलाया गया है । शेष गमकों का कथन स्पष्ट है। ___१०१ प्रश्न-पजत्तसंखेन्जवासाउयसण्णिमणुस्से णं भंते ! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए णेरइएसु जाव उववजिचए से णं भंते ! केवइ० जाव उववजेजा ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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