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________________ ३०३२ भगवती सूत्र - श. २४ उ १ मनुष्यों का नरकोपपात १०१ उत्तर - गोयमा ! जहणेणं सागरोवमट्टिईएस, उक्को सेणं तिसागरोवमट्ठिईएस उववजेजा । भावार्थ - १०१ प्रश्न - हे भगवन् ! संख्येक वर्षायुष्क पर्याप्त संज्ञी मनुष्य, शर्कराप्रभा में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति के नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? १०१ उत्तर - हे गौतम! जघन्य एक सोगरोपम और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न होता है । १०२ प्रश्न - ते णं भंते !० १०२ उत्तर - सो चेव रयणप्पभापुढ विगमओ नेयव्वो । नवर सरीरोगाहणा जहणेणं स्यणिपुहुत्तं, उक्कोसेणं पंचधणुमयाई । टिई जहणेणं वासपुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी, एवं अणुबंधो वि । सेसं तं चेव, जाव 'भवादेसो त्ति । कालादेसेणं जहणेणं सागरोवमं, वासपुहत्तम भहियं, उक्कोसेणं बारस सागरोवमाई चउहिं पुव्वकोडीहिं अमहियाई - एवइयं जाव करेजा । एवं एसा ओहिएलु तिसु गमएसु मणसस्स लद्वी । णाणत्तं - रइयईि कालादेसेणं संवेहं च जाणेजा १-२ - ३ | भावार्थ - १० - १०२ प्रश्न - हे भगवन् ! वे एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं। १०२ उत्तर - हे गौतम! रत्नप्रभा नैरयिकों में वर्णित गमक जानो । विशेषता यह कि शरीर को अवगाहना जघन्य रत्नि- पृथक्त्व ( दो हाथ से नो हाथ तक) और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष होती है । स्थिति जघन्य वर्ज पृथक्त्व और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष, इसी प्रकार अनुबन्ध भी । शेष सब पूर्ववत् यावत् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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