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भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ मनुष्यों का नरकोपपात
यह है कि शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की होती है। स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की होती है और इसी प्रकार अनुबन्ध भी होता है । काल से जघन्य पूर्वकोटि अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम तक यावत् गमनागन करता है ७ ।
९९-सो चेव जहण्णकालटिईएसु उववष्णो,सच्चेव सत्तमगमगवत्तव्वया । णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अमहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुवकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अमहियाओ-एवइयं कालं जाव करेजा ८ ।
९९-वह उत्कृष्ट स्थिति वाला मनुष्य, जघन्य स्थिति वाले रत्नप्रभा मेरयिकों में उत्पन्न हो, तो सातवें गमक के अनुसार । विशेषता में काल से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि तक यावत् गमनागमन करता है ८ ।
१००-सो चेव उक्कोसकालढिईएसु उवषण्णो, स च्चेव सत्तम * गमगवत्तव्वया । णवरं कालादेसेणं जहण्णेणं एगं सागरोवमं पुव्वकोडीए अब्भहियं, उकोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चरहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई-एवइयं कालं जाव करेजा ९ ।
१००-वह उत्कृष्ट स्थिति वाला मनुष्य उत्कृष्ट स्थिति वाले रत्नप्रभा नयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त सातवें गमक वक्तव्यतावत् । विशेषता यह है कि काल से जघन्य पूर्वकोटि अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है ९ ।
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