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________________ भगवती सूत्र-ग. २४ उ. १ मनप्यों का नरकोपपति ३०२९ भावार्थ-९६ यदि वह जघन्य स्थिति वाला मनुष्य, जघन्य स्थिति वाले रत्नप्रभा नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त चौथे गमक के समान। विशेषता यह कि काल की अपेक्षा जघन्य मासपथक्त्व अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट चार मासपृथक्त्व अधिक चालीस हजार वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है ।५। ९७-सो चेव उक्कोसकालट्टिईएसु उववण्णो-एस चेव गमगो। णवरं कालादेमेणं जहण्णेणं सागरोवमं मासपुहत्तमभहियं, उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चाहिं मासपुहुत्तेहिं अब्भहियाई-एवइयं जाव करेजा ६। भावार्थ-९७-यदि वह जघन्य स्थिति वाला मनुष्य उत्कृष्ट स्थिति वाले रत्नप्रभा नेरयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त गमकानुसार । विशेषता यह कि काल को अपेक्षा जघन्य मासपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार मासपृथक्त्व अधिक चार सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है ।६।। ९८-सो चेव अप्पणा उकोसकालट्ठिईओ जाओ, सो चेव पढमगमओ णेयव्यो । णवरं सरीरोगाहणा जहण्णेणं पंचधणुसयाई, उक्कोसेण वि पंचधणुसयाई, ठिई जहण्णेणं पुवकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी, एवं अणुबंधो वि। कालादेसेणं जहण्णेणं पुषकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेण चत्तारि सागरोवमाई चाहिं पुवकोडीहिं अब्भहियाइं-एवइयं काल जाव करेजा ७।। भावार्थ-९८-यदि वह मनुष्य स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और रत्नप्रभा नरयिकों में उत्पन्न हो, तो इसके विषय में प्रथम गमक के समान । विशेषता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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