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________________ ३०२० भगवती गुत्र-श. २४ उ. १ संज्ञी तिर्यंच का नरकोपपात जघन्य स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न हो, तो चौथा गमक यावत् कालादेश तक सम्पूर्ण जानना चाहिये । ५ । ८२-सो चेव उक्कोसकालदिईएसु उववण्णो० सच्चेव लद्धी जाव 'अणुबंधो' ति । भवादेसेणं जहण्णेणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहण्णेणं तेत्तीसं सागरो. वमाइं दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावहिँ सागरोवमाइं तिहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं जाव करेजा ६। भावार्थ-८२ जघन्य स्थिति वाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच, सातवीं नरक में उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो, इस विषय में यावत् अनुबन्ध तक पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिये । भव की अपेक्षा जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पांच भव तथा काल की अपेक्षा जघन्य दो अन्तर्मुहर्त अधिक तेतीस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन अन्तर्मुहूर्त अधिक ६६ सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है । ६ । ८३-सो चेव अप्पणा उक्कोसकालढिईओ जहण्णेणं बावीससागरोवमट्टिईएसु, उक्कोसेणं तेत्तीससागरोवमट्टिईएसु उववज्जेजा। भावार्थ-८३-उत्कृष्ट स्थिति वाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तियंच, सातवीं नरक में उत्पन्न हो, तो वह जघन्य बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न होता है। ८४-ते णं भंते !० अवसेसा सच्चेव सत्तमपुढविपढमगमगवत्तव्यया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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