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________________ भगवती सूत्र-ग. २४ उ. १ संजी तिथंच का नरकोपपात ६०२१ भाणियब्वा जाव 'भवादेसो ति। णवरं ठिई अणुबंधो य जहण्णेणं पुवकोडी उक्कोसेण वि पुटवकोडी, सेसं तं चेव । कालादेसेणं जहण्णेणं बावीसं सागरोवमाई दोहिं पुवकोडीहिं अमहियाई, उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाई चउहि पुवकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं जाव करेजा ७। ___ भावार्थ-८४-वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं, इत्यादि सम्पूर्ण वक्तव्यता सात्वी नरक पृथ्वी के प्रथम गमक के समान यावत् भवादेश पर्यंत । विशेष में स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि, शेष सब पूर्ववत् । संवेध, काल से जघन्य दो पूर्वकोटि अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है । ७ । ८५-सो चेव जहण्णकालट्ठिईएसु उववण्णो० सच्चेव लद्दी संवेहो वि तहेव सत्तमगमगसरिसो ८ । ___ भावार्थ-८५-उत्कृष्ट स्थिति वाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच, सातवीं नरक में जघन्य स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न हो, तो पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिये । संवेध सातवें गमक के समान है । ८ ।। ___ ८६-सो चेव उक्कोसकालट्टिईएसु उववण्णो० एस चेव लद्धी जाप 'अणुबंधो' त्ति । भवादेसेणं अहण्णेणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहणेणं तेत्तीसं सागगे. वमाइं दोहिं पुवकोडीहिं अब्भहियाई, उक्कोसेणं छावढेि सागरोवमाइं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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