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भगवती सूत्र-श. २४ उ. १ संज्ञी तिर्यंच का नरकोपपात
उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम काल तक यावत् गमनागमन करता है ३।
. ८०-सो चेव अप्पणा जहण्णकालट्ठिईओ जाओ० सच्चेव रयणप्पभापुढविजहण्णकालट्टिईयवत्तव्वया भाणियवा जाव 'भवा. देसो त्ति, गवरं पढमसंघयणं, णो इत्थिवेयगा। भवादेसेणं जहणेणं तिण्णि भवग्गहणाई, उक्कोसेणं सत्त भवग्गहणाइं । कालादेसेणं जहणणं वावीसं सागरोवमाइं दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अभहियाई, उक्को-.. सेणं छावहिँ सागगेवमाइं चउहि अंतोमुहुत्तेहिं अमहियाई, एवइयं जाव करजा ४।
८०-जघन्य स्थिति वाला वह संज्ञी पंचेंद्रिय तियंच, सातवीं नरक पृथ्वी में नरयिकपने उत्पन्न हो, इस विषयक सारी वक्तव्यता रत्नप्रभा में उत्पन्न होने वाले जघन्य स्थिति वाले संज्ञी तियंच पंचेंन्द्रिय के समान यावत् भवादेश पर्यन्त । विशेष यह कि सातवीं नरक पृथ्वी में उत्पन्न होने वाला प्रथम संहननी होता है, वह स्त्रीवेदी नहीं होता । भव की अपेक्षा जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट सात भव तथा काल को अपेक्षा जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त अधिक ६६ सागरोपम काल तक यावत् गमनागमन करता है।
८१-सो चेव जहण्णकालट्टिईएसु उववण्णो० एवं सो चेव चउत्थो गमओ गिरवसेसो भाणियव्यो जाव 'कालादेसो' ति ५।
८१-जघन्य स्थिति वाला संज्ञो पंचेन्द्रिय तियंच, सातवीं नरक में
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