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________________ ३०१२ भगवती सूत्र - २४ उ १ संज्ञी तिथंच का नरकोपपात भी होता है, शेष पूर्ववत् । काल की अपेक्षा जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम तक यावत् गमनागमन करता है ७ । ७० - सो चैव जहण्णका लट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं दसवासमहस्त दिईए, उक्को सेण वि दसवास सहस्सट्टिईएस उववज्जेज्जा । ७० - वह जंघन्य और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । ७१ प्रश्न - ते णं भंते ! जीवा० ? ७१ उत्तर - सो चेव सत्तमो गमओ णिरवसेसो भाणियव्वो, जाव 'भवादेसी' त्ति । कालादेसेणं जहणेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्लेहिं अमहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडींओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अन्भहियाओ, एवइयं जाव करेजा ८ । भावार्थ - ७१ प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ७१ उत्तर - हे गौतम! परिमाण से ले कर भवादेश तक सातवें गमकवत् । काल से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि वर्ष और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है ८ । ७२ प्रश्न - उक्कोसका लट्ठियपज्जत्त० जाव तिरिखखजोणिए णं भंते ! जे भविए उक्कोसकालट्ठिईय० जाव उववज्जित्तए से गं भंते ! केवइकालट्ठिएस उववज्जेज्जा ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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