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भगवती सूत्र - श. २४ उ. १ संज्ञी तियंच का नरकोपपात
तिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढविणेग्इएस उववज्जितए से णं भंते ! केवइयकालट्ठिईएस उववज्जेज्जा ?
६८ उत्तर - गोयमा ! जहणेणं दसवासमहस्सट्टिईएस, उकोसेणं सागरोवमट्टिईएसु उववज्जेज्जा ।
भावार्थ - ६८ प्रश्न - हे भगवन् ! वह उत्कृष्ट स्थिति वाला संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच, रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ?
६८ उत्तर - हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ।
६९ प्रश्न - ते णं भंते जीवा० ?
६९ उत्तर - अवसेसो परिमाणादीओ भवाएसपज्जवसाणो एएसिं चैव पढमगमओ यव्वो णवरं ठिई जहणणेणं पुव्वकोडी, उक्कोमेण विपुव्वकोडी । एवं अणुबंधो वि, सेसं तं चैवं । कालादेसेणं जहणेणं पुचकोडी दमहिं वासमहस्सेहिं अमहिया, उक्कोसेणं चत्तारि सागगेवमाई चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई, एवइयं कालं जाव करेजा ७ ।
भावार्थ - ६९ प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ?
६९ उत्तर - हे गौतम! परिमाण से ले कर भवादेश तक की वक्तव्यता के लिये संज्ञी पञ्चेन्द्रिय का प्रथम गमक जानना चाहिये । विशेष यह है कि स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की होती है और इसी प्रकार अनुबन्ध
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