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________________ भगवती सूत्र-टा. २८ उ. ? मंज्ञी तियं व का नरकोपपात ३.१३ ___७२ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमट्टिईएसु, उक्कोसेण वि सागरोवमट्टिईएमु उववजेजा । भावार्थ-७२ प्रश्न-हे भगवन् ! उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त पंचेंद्रिय तिथंच उत्कृष्ट स्थिति वाले रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले नयिकों में उत्पन्न होता है ? ७२ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट एक सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है । ७३ प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा ? ७३ उत्तर-सो चेव सत्तमगमओ णिरवसेसो भाणियव्वो जाव 'भवादेसो' त्ति । कालादेसेणं जहण्णेणं सागरोवमं पुवकोडीए अव्भहियं, उकोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं पुवकोडीहिं अव्भहियाई, एवइयं जाव करेजा ९ । एवं एए णव गमका उक्खेवणिक्खे. वओ णवसु वि जहेव असण्णीणं । भावार्थ-७३ प्रश्न-हे भगवन् ! वे एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ७३ उत्तर-हे गौतम! परिमाण से ले कर भवादेश तक के लिये सातवां गमक सम्पूर्ण कह देना चाहिये यावत् काल की अपेक्षा जधन्य पूर्वकोटि अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम तक यावत गमनागमन करता है । इस प्रकार ये नव गमक होते हैं। इन नव गमकों का प्रारम्भ और उपसंहार असंज्ञी के समान है। विवेचन-संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच जो नरक में उत्पन्न होने वाले हैं, उनमें तीन ज्ञान या तीन अज्ञान विकल्प से होते हैं अर्थात् किसी में दो ज्ञान या तीन ज्ञान होते हैं और किसी में दो अज्ञान या तीन अज्ञान होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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