SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - श. २४ उ १ नैरयिकादि का उपपातादि ४६ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्टिएईसु, उक्कोसेण वि दसवास सहसडिईएस उववज्जेज्जा । भावार्थ- ४६ प्रश्न - हे भगवन् ! उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी तिर्यंव-योनिक जीव, रत्नप्रभा में जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? ४६ उत्तर - हे गौतम! जघन्य और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरनिकों में उत्पन्न होता है । २९९९ ४७ प्रश्न - ते णं भंते ! • ? ४७ उत्तर - सेसं तं चैव, जहा सत्तमगमए । जाव ---- भावार्थ- ४७ प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ४७ उत्तर - हे गौतम! पूर्ववत् यावत् अनुबन्ध तक सातवें गमक के अनुसार जानना चाहिये । यावत् ४८ प्रश्न - से णं भंते ! उक्कोसका लट्ठिईय जाव तिरिक्खजोणिए जहण्णकाल ट्टिईयरयणप्पभा० जाव करेज्जा ? S ४८ उत्तर - गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाईं, कालादेसेणं जहणेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेण वि पुव्यकोडी दसवाससहस्सेहिं अमहिया, एवइयं जाव करेजा ८ । भावार्थ - ४८ प्रश्न - हे भगवन् ! वह उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पंचेंद्रिय तिर्यंच-योनिक, रत्नप्रभा में जघन्य स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो, और पुनः पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक हो, इस प्रकार कितने काल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy