________________
२९६८
भगवती सूत्र - श. २४ उ १ नैरयिकादि का उपपातादि
विव्वकोडी, एवं अणुबंधो वि, अवसेसं तं चैव ।
भावार्थ - ४४ प्रश्न - हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न
होते हैं ?
४४ उत्तर - हे गौतम! सारी वक्तव्यता पूर्व के औधिक (सामान्य) पाठ के अनुसार जाननी चाहिये । स्थिति और अनुबन्ध में अन्तर है । स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष और अनुबन्ध भी इसी प्रकार है, शेष पूर्ववत् । ४५ प्रश्न - से णं भंते ! उक्कोसका लट्ठियपज्जत्तअसणि० जाव तिरिक्खजोणिए रयणप्पभा० जाव - ?
४५ उत्तर - गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहणणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अव्भहिया, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुव्वकोडीए अव्भहियं, एवइयं जाव करेजा ७ ।
भावार्थ - ४५ प्रश्न - हे भगवन् ! वह उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक, फिर रत्नप्रभा में उत्पन्न हो और पुनः उत्कृष्ट स्थिति वाला असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक हो, इस प्रकार कितने काल तक यावत् गमनागमन करता है ?
४५ उत्तर - हे गौतम! भव से दो भव और काल से जघन्य दस हजार वर्ष अधिक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक पत्योपम का असंख्यातवां भाग तक यावत् गमनागमन करता है ७|
Jain Education International
४६ प्रश्न - उक्कोसका लट्ठिईयपज्जत्त० तिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए जहण्णकालट्ठिईएस रयण० जाव उववज्जित्तए से णं भंते! केवइ० जाव उववजेजा ?
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org