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भगवती मूत्र-श. २४ उ. १ नरयिकादि का उपपातादि
भावार्थ-४२ प्रश्न-हे भगवन् ! वह जघन्य स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच रत्नप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न हो और पुनः पर्याप्त असंज्ञो पञ्चेन्द्रिय तियंच-योनिक हो, इस प्रकार कितने काल तक यावत् गमनागमन करता है ?
४२ उत्तर-हे गौतम ! भव की अपेक्षा दो भव और काल की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहुर्त अधिक पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग तक यावत् गमनागमन करता है । ६ ।
४३ प्रश्न-उकोसकालट्ठिइयपज्जत्तअसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजो. णिए णं भंते ! जे भविए रयणप्पभापुढविणेरइएसु उववजित्तए से णं भंते ! केवइयकाल० जाव उववज्जेज्जा ? . ४३ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्टिईएसु, उकासेणं पलिओवमस्स असंखेजइ० जाव उववज्जेजा।
भावार्थ-४३ प्रश्न-हे भगवन् ! उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक जीव रत्नप्रभा में नैरयिकपने उत्पन्न होता है, वह कितने काल की स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न होता है ?
_४३ उत्तर -हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पल्योपम ' के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न होता है।
४४ प्रश्न ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं० ?
४४ उत्तर-अवसेसं जहेव ओहियगमएणं तहेव अणुगंतव्वं । णवरं इमाई दोणि णाणत्ताई-ठिई जहण्णेणं पुवकोडी, उक्कोसेण
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