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________________ ३००० भगवती मूत्र-श. २४ उ. १ नैरयिकादि का उपपातादि तक यावत् गमनागमन करता है ? ४८ उत्तर-हे गौतम ! भव की अपेक्षा दो भव और काल की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक दस हजार वर्ष तक यावत् गमनागमन करता है। ८। ४९ प्रश्न-उकोमकालदिईयपजत्त० जाव तिरिक्खजोणिए णं भंते ! जे भविए उक्कोसकालट्टिईएसु रयण० जाव उववजित्तए से णं भंते ! केवइयकाल० जाव उववज्जेजा ? __४९ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागदिईएसु, उक्कोसेण वि पलिओवमस्स असंखेजइभागट्टिईएसु उवयज्जेजा। भावार्थ-४९ प्रश्न-हे भगवन् ! उत्कृष्ट स्थिति वाला पर्याप्त असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच-योनिक रत्नप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न हो, तो कितने काल की स्थिति वाले नरयिकों में उत्पन्न होता है ? ४९ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। ५० प्रश्न-ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं० ? ५० उत्तर-सेसं जहा सत्तमगमए जाव भावार्थ-५० प्रश्न-हे भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? ५० उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत् सातवें गमक के अनुसार । यावत् ५१ प्रश्न-से णं भंते ! उक्कोसकालट्टिईयपज्जत्त० जाव तिरि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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