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________________ भगवती सूत्र - ग. २० उ. १० द्वादश समजित सव्वेमिं अप्पावहुगं जहा छक्कसमज्जियाणं, णवरं वारसाभिलावो, सेसं तं चेव । भावार्थ - २० प्रश्न - हे भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक द्वादश- समजत हैं, इत्यादि प्रश्न | २६३५ २० उत्तर - हे गौतम! पृथ्वीकायिक द्वादश समजत नहीं हैं, नो-द्वादशसमजत नहीं हैं। द्वादश, नो- द्वादश- समजित भी नहीं है । परन्तु अनेक द्वादशसमजत और अनेक द्वादश नो-द्वादश- समजत हैं । प्रश्न - हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया कि यावत् समजित हैं ? उत्तर - हे गौतम ! जो पृथ्वीकायिक अनेक द्वादश प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादश- समजत हैं । जो पृथ्वीकायिक अनेक द्वादश तथा अन्य जघन्य एक, दो, तीन उत्कृष्ट ग्यारह प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादशसमजत और एक नो- द्वादश समजत हैं । इस कारण हे गौतम ! यावत् समजत हैं- ऐसा कहा गया है। इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक । बेइन्द्रियों से ले कर वैमानिक तक तथा सिद्धों का कथन नैरयिकों के समान है । २१ प्रश्न - हे भगवन् ! द्वादश समजत यावत् अनेक द्वादश, नो-द्वादशसमजत नैरयिकों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं । २१ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार षट्क समजत का अल्प - बहुत्व कहा, उसी प्रकार द्वादश- समजित का भी अल्प - बहुत्व भी कहना चाहिये । विशेष यह है कि षट्क के स्थान में 'द्वादश' ऐसा अभिलाप कहना चाहिये । शेष पूर्ववत् । विवेचन - बारह - बारह के समुदाय रूप से एक साथ, एक समय में उत्पन्न हों, उन्हें 'द्वादश- समर्जित' कहते हैं । एक से ले कर ग्यारह तक जो उत्पन्न हों, उन्हे 'नो द्वादशसमजत' कहते हैं । शेष कथन षट्क समजत के समान समझना चाहिये । इनका अल्पबहुत्व भी षट्क समजत है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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