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________________ २९३४ भगवती सूत्र-श. २० उ. १० द्वादश-समज्जित वे द्वादश, नो-द्वादश-समजित हैं। जो नरयिक एक समय में अनेक बारह-बारह की संख्या में प्रवेश करते है, वे अनेक द्वादश-समजित हैं। जो नरयिक एक समय में अनेक बारह-बारह की संख्या में तथा जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट ग्यारह तक प्रवेश करते हैं, वे अनेक द्वादश, नो-द्वादश-समर्जित हैं। इस कारण हे गौतम ! यावत् वे अनेक द्वादश, नो-द्वादश-समजित कहलाते हैं। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यंत । २० प्रश्न-पुढविकाझ्याणं-पुच्छा। '२० उत्तर-गोयमा ! पुढविकाइया णो बारससमजिया १, णो णोवारससमजिया २ णो वारसरण य णोवारसरण य समजिया ३, वारसएहिं समजिया ४, बारसएहि य णोबारसएण य समजिया वि ५। प्रश्न-से केणटेणं जाव 'समज्जिया वि' ? उत्तर-गोयमा ! जे णं पुढविकाइया णेगेहिं बारसएहिं पवेसणगं पविसंति ते णं पुढविकाइया बारसएहिं समज्जिया। जे णं पुढविक्काइया णेगेहिं बारसरहिं अण्णेण य जहण्णेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा उक्कोसेणं एकारसरणं पवेसणएणं पविसंति ते णं पुढविकाइया वारसएहिं य णोबारसएण य समज्जिया, से तेणटेणं जाव 'समज्जिया वि' । एवं जाव वणस्सइकाइया। वेइंदिया जाव सिद्धा जहा णेरइया । २१ प्रश्न-एएसि णं भंते ! गैरइयाणं बारससमज्जियाणं० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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