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________________ २९१० भगवती सूत्र-श. २० उ. ८ तीर्थ और तीर्थकर १३ उत्तर-हे गौतम ! अरिहन्त तो अवश्य तीर्थंकर हैं (तीर्थ नहीं) परन्तु ज्ञानादि गुणों से युक्त चार प्रकार का श्रमण-संघ तीर्थ कहलाता है । यथा-साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका । १४ प्रश्न-हे भगवन् ! 'प्रवचनकार' ही 'प्रवचन' कहलाता है या उनके द्वारा उपदिष्ट 'प्रवचन' ? १४ उत्तर-हे गौतम ! अरिहन्त अवश्य प्रवचनी हैं (प्रवचन नहीं) और द्वादशांग गणिपिटक प्रवचन है । यथा-आचारांग यावत् दृष्टिवाद । १५ प्रश्न-हे भगवन् ! जो उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल, इक्ष्वाकुकुल, ज्ञातकुल और कौरम्यकुल, इन कुलों में उत्पन्न क्षत्रिय, इस धर्म में प्रवेश करते हैं और प्रवेश कर के आठ प्रकार के कर्म रूपी रज-मैल को धुनते हैं (नष्ट करते हैं) इसके पश्चात् वे सिद्ध होते हैं, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं ? १५ उत्तर-हाँ, गौतम ! उग्रकुल आदि कुलों में उत्पन्न क्षत्रिय है, वे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं और कितने ही किन्हीं देवलोकों में देवपने उत्पन्न होते हैं। १६ प्रश्न-हे भगवन् ! देवलोक कितने प्रकार के कहे हैं ? १६ उत्तर-हे गौतम ! देवलोक चार प्रकार के कहे हैं । यथा-भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक । ___ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार हैकह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-संघ को 'तीर्थ' कहते हैं, या तीर्थकर' को 'तीर्थ' कहते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि तीर्थंकर तो तीर्थ के प्रवर्तक होते हैं, इसलिये वे 'तीर्थ' नहीं कहलाते, किन्तु साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका रूप संघ 'तीर्थ' कहलाता है। दूसरा प्रश्न किया गया है कि 'प्रवचन' किसे कहते हैं ? इसका उत्तर दिया गया है कि 'प्रकर्षणोच्यतेऽभिधेयमनेनेतिप्रवचनम्-आगमः ।' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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