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भगवती सूत्र-श. २० उ. ९ चारण-मुनियों की तीव-गति
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-विशिष्ट रूप से जो कहा जाय, उमे 'प्रवचन' कहते हैं, अर्थात् 'आगम' को 'प्रवचन' कहते हैं । तीर्थकर भगवान् प्रवचन के प्रणेता होते हैं । इसलिये वे 'प्रवचनी' कहलाते हैं।
॥ बीसवें शतक का आठवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक २० उद्देशक
चारण-मुनियों की तीव्र-गति
१ प्रश्न-कहविहा णं भंते ! चारणा पण्णत्ता ?
१ उत्तर-गोयमा ! दुविहा चारणा पण्णत्ता, तं जहा-विजाचारणा य, जंघाचारणा य।
२ प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-विजाचारणा' २ ?
२ उत्तर-गोयमा ! तस्स णं छटुंछटेणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं विजाए उत्तरगुणलद्धिं खममाणस्स विजाचारणलद्धी णामं लद्धी समुप्पज्जइ, से तेणटेणं जाव विजाचारणा २।।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! चारण कितने प्रकार के कहे हैं ? १ उत्तर-हे गौतम ! चारण दो प्रकार के कहे हैं। यथा-विद्या
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