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________________ भगवती सूत्र - श. १८ उ. १ सलेशीपनादि प्रथम है या अप्रथम ? अर्थात्-१ जीव द्वार २ आहारक द्वार ३ भवसिद्धिक ४ संज्ञी ५ लेश्या ६ दृष्टि ७ संयत ८ कषाय ९ ज्ञान १० योग ११ उपयोग १२ वेद १३ शरीर और १४ पर्याप्ति द्वार । इन चौदह द्वारों में से संज्ञी द्वार तक चार द्वारों का भावार्थ ऊपर दिया गया है । प्रथम, अप्रथम की व्याख्या इस प्रकार है २६५२ जो जेण पत्तपुव्वो भावो, सो तेण अफ्ढमो होइ । सेसेसु होइ पढमो, अपत्तपुव्वेसु भावेसु ॥ अर्थात् - जिस जीव ने जो भाव पूर्व ( पहले ) भी प्राप्त किया है. उसकी अपेक्षा वह 'अप्रथम' कहलाता है । जैसे-जीव को जीवत्व अनादि काल से प्राप्त है । इसलिये जीवत्व की अपेक्षा जीव अप्रथम है । जो भाव जीव को पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ, उसे प्राप्त करना, उस भाव की अपेक्षा 'प्रथम' कहलाता है । जैसे - सिद्धत्व की अपेक्षा जीव प्रथम है । क्योंकि सिद्धत्व जीव को पहले कभी प्राप्त नहीं हुआ था । सिद्ध जीव और विग्रहगति प्राप्त संसारी जीव अनाहारक होते हैं । अनाहारक भाव की अपेक्षा सिद्ध प्रथम हैं, क्योंकि उन्हें अनाहारकत्व पहले प्राप्त नहीं हुआ था । संसारी ta प्रथम हैं, क्योंकि विग्रहगति में उसने अनाहारकपना अनन्त बार प्राप्त किया है। इस प्रकार दण्डक के क्रम से नैरयिक से ले कर वैमानिक तक के सभी जीव पूर्वोक्त हेतु से अनाहारक भाव की अपेक्षा अप्रथम है ।' संज्ञी जीव, संज्ञी भाव से अप्रथम है, क्योंकि संज्ञीपना अनन्त बार प्राप्त हो चुका है । असंज्ञी द्वार में जीव और नैरयिक से ले कर दण्डक के क्रम से व्यन्तर तक के जीव असंज्ञी भाव से अप्रथम हैं, क्योंकि उनमें असंज्ञीपन भूतपूर्व गति की अपेक्षा तथा वहाँ आने पर भी कुछ देर तक नरक, भवनपति और वाणव्यन्तरों में पाया जाता है । असंज्ञी जीवों का उत्पाद वाणव्यन्तर तक होता है। पृथ्वीकायिकादि असंज्ञी जीव तो असंज्ञी भाव की अपेक्षा अप्रथम हैं । Jain Education International सशीपनादि प्रथम है या अप्रथम ? १० प्रश्न - सलेसे णं भंते ! पुच्छा । १० उत्तर - गोयमा ! जहा आहारए, एवं पुहुत्तेण वि । कण्ह For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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