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________________ भगवती सूत्र-श. १८ उ. १ जीव प्रथम है या अप्रथम ? २६५१ ७ उत्तर-हे गौतम ! वे प्रथम भी हैं और अप्रथम भी। इसी प्रकार नरयिक से ले कर वैमानिक तक सभी प्रथम नहीं, अप्रथम हैं । सिद्ध प्रथम हैं, अप्रथम नहीं । इस प्रकार प्रत्येक दण्डक के विषय में प्रश्न करना चाहिये। ८ प्रश्न-आहारक जीव के समान भवसिद्धिक जीव, भवसिद्धिकपने प्रथम नहीं, अप्रथम है, इत्यादि वक्तव्यता एक वचन और बहुवचन से कहनी चाहिये । इसी प्रकार अभवसिद्धिक प्रश्न के उत्तर में भी जानना चाहिये । (प्रश्न) नोभवसिद्धिक नोअभवसिद्धिक जीव, नोभवसिद्धिक नोअभवसिद्धिक भाव की अपेक्षा प्रथम है या अप्रथम है ? ८ उत्तर-हे गौतम ! प्रथम है, अप्रथम नहीं। प्रश्न-नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक जीव, नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक भाव से प्रथम हैं या अप्रथम ? उत्तर-पूर्ववत् । इसी प्रकार जीव और सिद्ध दोनों के बहुवचन सम्बन्धी प्रश्नोत्तर भी जानना चाहिये । ९प्रश्न-हे भगवन् ! संज्ञी जीव, संज्ञी भाव की अपेक्षा प्रथम है या अप्रथम? . ९ उत्तर-हे गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है। इस प्रकार विकलेन्द्रिय (एकेन्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, और चौरिन्द्रिय) को छोड़ कर यावत् वैमानिकता जानना चाहिये। इसी प्रकार बहुवचन सम्बन्धी वक्तव्यता भी जाननी चाहिये। असंज्ञी जीवों के विषय में भी एकवचन और बहुवचन पृच्छा इसी प्रकार जाननी चाहिये। विशेषता यह है कि यह वाणव्यन्तरों तक ही जाननी चाहिये । नोसंज्ञी नो असंज्ञी जीव, मनुष्य और सिद्ध, नो संज्ञी नो असंज्ञी भाव की अपेक्षा प्रथम है, अप्रथम नहीं । इस प्रकार बहुवचन सम्बन्धी प्रश्नोत्तर भी जान लेने चाहिये । . विवेचन-इस उद्देशक में जीवादि चौदह द्वारों में प्रथम, अप्रथम आदि भाव का विचार, चौवीस दण्डक और सिद्ध जीव के विषय में किया गया है । उन चौदह द्वारों को सूचित करने वाली संग्रह-गाथा इस प्रकार है .जोवाहारग-भव-सण्णी, लेस्सा विट्ठी य संजय-कसाए । गाणे जोगुवओगे, वेए य सरीर-पज्जती ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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