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________________ भगवती सूत्र-श. १८ उ. १ सलेशीपनादि प्रथम है या अप्रथम ? २६५३ लेस्सा जाव सुकलेस्सा एवं चेव, णवरं जस्स जा लेसा अस्थि । अलेसे णं जीव-मणुस्स सिद्धे जहा णोसण्णीणोअसण्णी ।५। ११ प्रश्न-सम्मदिट्टीए णं भंते ! जोवे सम्मदिट्ठिभावेणं किं 'पढमे-पुच्छा । ११. उत्तर-गोयमा ! सिय पढमे, सिय अपदमे । एवं एगिदियः वजं जाव वेमाणिए । सिधे पढमे, णो अपढमे । पुहुत्तिया जीवा पढमा वि अपढमा वि, एवं जाव वेमाणिया । सिद्धा पढमा, णो अपढमा । मिच्छादिट्ठीए एगत्तपुहुत्तेणं जहा आहारगा। सम्मामिच्छा. दिट्ठी एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी,णवरं जस्स अस्थि सम्मामिच्छत्तं ।६। - १२-संजए जीवे मणुस्से य एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिट्टी, असं. जए जहा आहारए, संजयासंजए जीवे पंचिंदियतिरिक्खजोणिय. मणुस्सा एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिट्ठी णोसंजए णोअसंजए णोसंजया. संजए जीवे सिधे य एगत्तपुहुत्तेणं पढमे, णो अपढमे ।। १३-सकसायी कोहकसायी जाव लोभकसायी एए एगत्तपुहुत्तेणं जहा आहारए, अकसायी जीवे सिय पढमे सिय अपढमे, एवं मणुस्से वि । सिद्धे पढमे, णो अपढमे; पुहुत्तेणं जीवा मणुस्सा वि पढमा वि अपढमा वि । सिद्धा पढमा, णो अपढमा । ८ । १४-णाणी एगत्तपुहुत्तेणं जहा सम्मदिट्टी, आभिणिवोहियणाणी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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