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________________ भगवती सुत्र-श. १९ उ. ८ जीव-निर्वति आदि २८१७ १७ प्रश्न-पुढविकाइयाणं पुच्छा। १७ उत्तर-गोयमा ! एगा मसूरचंदसंठाणणिवत्ती पण्णत्ता, जस्स जं संठाण जाव वेमाणियाणं । कठिन शब्दार्थ-मसूरचंदसंठाण-मसूर की दाल के आकार अर्थात् हुण्डक संस्थान । भावार्थ-१४ प्रश्न-हे भगवन् ! संस्थान-निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? १४ उत्तर-हे गौतम ! संस्थान-निवृत्ति छह प्रकार की कही गई है। यथा-समचतुरस्र संस्थान-निर्वृत्ति यावत् हुण्डक संस्थान-निवृत्ति । १५ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिकों के संस्थान-निवृत्ति कितनी है ? १५ उत्तर-हे गौतम ! एक हुण्डक संस्थान-निवृत्ति कही गई है। १६ प्रश्न-हे भगवन् ! असुरकुमारों के संस्थान-निर्वत्ति कितनी है ? १६ उत्तर-हे गौतम ! एक समचतुरस्त्र संस्थान-निवृत्ति है। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त । १७ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के संस्थान निर्वत्ति-कितनी है ? १७ उत्तर-हे गौतम ! एक मसूर-चन्द्र (मसूर की दाल के समान) संस्थान-निवृत्ति कही गई है। इस प्रकार जिसके जो संस्थान हो, वह कहना चाहिये । इस प्रकार यावत् वैमानिक तक । १८ प्रश्न-कइविहा णं भंते ! सण्णाणिवत्ती पण्णता ? १८ उत्तर-गोयमा ! चउन्विहा सण्णा णिवत्ती पण्णत्ता, तं जहा-आहारसण्णाणिवत्ती जाव परिग्गहसण्णाणिवत्ती, एवं जाव वेमाणियाणं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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