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________________ २८१२ भगवती मूत्र-श. १६ उ. ८ जीव-निवृनि आदि एकेन्द्रिय-जीव-निर्वत्ति और बादरपृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय जीव-निर्वृत्ति । इस अभिलाप द्वारा आठवें शतक के नौवें उद्देशक में बहद बन्धाधिकार में कथित तेजस-शरीर के भेदों के समान यहाँ भी जानना चाहिये, यावत् प्रश्न-हे भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरोपपातिक वैगानिक देव पञ्चेन्द्रिय जीव-निर्वति कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर-हे गौतम ! दो प्रकार की कही गई है । यथा-पर्याप्त सर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिक वैमानिक देव पञ्चेन्द्रिय जीव-निर्वृत्ति और अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक वैमानिक देव पञ्चेन्द्रिय जीव-निर्वति। ' विवेचन-निर्वृत्ति का अर्थ है- रचना, निष्पत्ति अर्थात् बनावट की पूर्णता । यहाँ पर जीव-निर्वृत्ति आदि का वर्णन किया गया है । जो भावार्थ से ही स्पष्ट है । ४ प्रश्न-कइविहा णं भंते ! कम्मणिवत्ती पण्णता ? ४ उत्तर-गोयमा ! अट्टविहा कम्मणिव्वत्ती पण्णत्ता, तं जहाणाणावरणिजकम्मणिवत्ती जाव अंतराइयकम्मणिवत्ती। ५ प्रश्न-णेरइयाणं भंते ! कइविहा कम्मणिवत्ती पण्णता ? ५ उत्तर-गोयमा ! अट्टविहा कम्मणिवत्ती पण्णत्ता, तं जहाणाणावरणिजकम्मणिव्यत्ती जाव अंतराइयकम्मणिव्वत्ती, एवं जाव वेमाणियाणं । भावार्थ-४ प्रश्न-हे भगवन् ! कर्म-निवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? ४ उत्तर-हे गौतम ! कर्म-निर्वृत्ति आठ प्रकार की कही गई है । यथाज्ञानावरणीय कर्म-निर्वृत्ति यावत् अन्तराय कर्म-निवृत्ति । ५ प्रश्न-हे भगवन् ! नैरयिक जीवों के कितने प्रकार की कर्म-निर्वृत्ति कही गई है ? ५ उत्तर-हे गौतम ! आठ प्रकार की कर्म-निवृत्ति कही गई है । यथा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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