________________
भगवती सूत्र - १९ उ. ८ जीव-निवृनि आदि
२८११
३ प्रश्न-पुढविकाइयएगिदियजीवणिवत्ती णं भंते ! कहविहा पण्णता ?
३ उत्तर-गोयमा ! दुविहा पण्णता, तं जहा-सुहुमपुढविकाइय. एगिंदियजीवणिव्वत्ती य बायरपुढवि०, एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा वडगबंधो तेयगसरीरस्स, जाव
प्रश्न-'सबट्टसिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पाईयवेमाणियदेवपंचिंदियजीवणिवत्ती णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ?'
उत्तर-गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पजत्तगसव्वदृसिद्धअणुत्तरोववाइय जावं देवपंचिंदियजीवणिवत्ती य अपज्जत्तगसव्वट्ठ. सिद्धाणुतरोववाइय जाव देवपंचिंदियजीवणिव्वत्ती य ।
कठिन शब्दार्थ-णिवत्ती-निर्वृत्ति-रचना । ___ भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव-निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ?
१ उत्तर-हे गौतम ! जीव-निर्वृत्ति पाँच प्रकार की कही गई है । यथाएकेन्द्रिय जीव-निर्वृत्ति यावत् पञ्चेन्द्रिय जीव-निर्वृत्ति।
२ प्रश्न-हे भगवन् ! एकेन्द्रिय जोव-निर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ?
२ उत्तर-हे गौतम ! पांच प्रकार की कही गई है। यथा-पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय जीव-निर्वृत्ति यावत् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय जीव-निर्वत्ति ।
३ प्रश्न-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय जीव-निवृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? . ३ उत्तर-हे गौतम ! दो प्रकार को कही गई है। यथा-सूक्ष्म पृथ्वीकायिक
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org