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भगवती सूत्र - श. १८. ७ देवों में कर्मक्षय का काल
अभिलाप से ब्रह्मदेवलोक और लान्तक कल्प के देव, तीन हजार वर्षों में, महाशुक्र और सहस्रार कल्प के देव चार हजार वर्षों में, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्प के देव पाँच हजार वर्षों में, अधस्तन ग्रैवेयक के देव एक लाख वर्षों में, मध्यम ग्रैवेयक के देव दो लाख वर्षों में, उपरिम ग्रैवेयक के देव तीन लाख वर्षों में, विजय, वैजयंत, जयन्त और अपराजित के देव चार लाख वर्षो में और सर्वार्थसिद्ध के देव पाँच लाख वर्षों में अनन्त कर्माशों को क्षय करते हैं। इसलिये हे गौतम! ऐसे देव हैं जो अनन्त कर्माशों को जघन्य एक सौ, दो सौ या तीन सौ वर्षों में यावत् पाँच लाख वर्षों में अनन्त कर्माशों को क्षय करते हैं ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
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विवेचन-- देवों के पुण्य कर्म पुद्गल प्रकृष्ट, प्रकृष्टतर और प्रकृष्टतम रस वाले होते हैं । अतः यहाँ अनन्त कर्माशों को खपाने का जो क्रम बतलाया गया है, वह क्रमश प्रकृष्ट, प्रकृष्टतर और प्रकृष्टतम रस वाले समझने चाहिये ।
|| अठारहवें शतक का सातवां उद्देशक सम्पूर्ण ||
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