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________________ २७३४ भगवती सूत्र - श. १८ उ. ७ देवों के कर्मक्षय का काल सोहम्मी-साणगा देवा अनंते कम्मंसे एगेणं वाससहरसेणं जाव खवयंति, सणकुमार- माहिंदगा देवा अनंते कम्मंसे दोहिं वासस हस्से हिं खवयंति, एवं एएणं अभिलावेणं बंभलोग लंतगा देवा अनंते कम्मं से तीहिं वासमहस्सेहिं खवयंति, महासुक्क सहस्सारगा देवा अनंते चउहिं वाससहस्सेहिं, आणय- पाणय- आरण-अच्चुयगा देवा अनंते पंचहिं वास सहस्ते हि खवयंति, हिट्टिमगेविज्जगा देवा अनंते कम्मंसे एगेणं वाससयस हस्सेणं ववयंति, मज्झिमगेवेजगा देवा अनंते दोहिं वासस्यसहस्सेहिं जाव खवयंति, उवरिमगेवेज्जगा देवा अनंते कम्मंसे तिहिं वास० जाव खवयंति, विजय वेजयंत- जयंत अपराजियगा देवा अनंते चउहिं वास० जाव खवयंति, सञ्वसिद्धगा देवा अनंते कम्मंसे पंचहिं वाससयसहस्सेहिं खवयंति, एएणणं गोयमा ते देवा जे अनंते कम्मंसे जहणेण एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा उक्कोसेणं पंचहिं बाससर हिं खवयंति, एएणं गोयमा ! ते देवा जाव पंचहिं वाससहस्सेहिं खवयंति, एएणणं गोयमा ! ते देवा जाव पंचहिं वाससयसहस्सेहिं खवयंति । * सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति ॥ अट्ठारसमे स सत्तमो उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ- सौधर्म और ईशान कल्प के देव, अनन्त कर्माशों को एक हजार वर्षो में, सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देव दो हजार वर्षों में, इस प्रकार इस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004091
Book TitleBhagvati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages566
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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