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________________ २२०४ भगवती सूत्र-स. १३ उ. ४ पंचास्तिकायमय लोक उत्तर-अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । इसी प्रकार यावत् अनन्त अद्धासमयों से स्पृष्ट होता है। ३० प्रश्न-हे भगवन् ! धर्मास्तिकाय द्रव्य, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? ३० उत्तर-हे गौतम ! एक भी प्रदेश से स्पृष्ट नहीं होता। प्रश्न-वह अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? उत्तर-असंख्य प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? प्रश्न-आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? उत्तर-असंख्य प्रदेशों से स्पष्ट होता है। प्रश्न-जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट होता है ? उत्तर-अनन्त प्रदेशों से स्पष्ट होता है । प्रश्न-पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट होता है । उत्तर-अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । प्रश्न-कितने अद्धा-समयों से स्पृष्ट होता है । उत्तर-कदाचित् स्पृष्ट होता है और कदाचित् नहीं होता । यदि होता है, तो अवश्य अनन्त समयों से स्पृष्ट होता है। ३१ प्रश्न-हे भगवन् ! अधर्मास्तिकाय द्रव्य, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। ३१ उत्तर-हे गौतम ! असंख्य प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्रश्न-अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट होता है ? उत्तर-एक भी प्रदेश से स्पष्ट नहीं होता । शेष सभी कथन धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिये । इसी प्रकार इसी पाठ द्वारा सभी स्व-स्थान में एक भी प्रदेश से स्पृष्ट नहीं होते और पर-स्थान में धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय-ये तीनों असंख्य प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। पीछे के तीन स्थान (जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धा-समय) अनन्त प्रदेशों से स्पष्ट Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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