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भगवती सूत्र - १३ उ. : पंचास्तिकायमय लोक
आइल्लएहिं तिहिं असंखेजेहिं भाणियव्वं, पच्छिल्लएस अनंता भाणियव्वा, जाव अद्धासमयो त्ति, जाव
प्रश्न - केवड़एहिं अद्धामम एहिं पुट्टे ? उत्तर- त्थि एक्केण वि ।
भावार्थ - २७ प्रश्न - हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ?
२७ उत्तर - हे गौतम! जघन्य पद में उन्हीं असंख्यात प्रदेशों को दुगुना करके, उन में दो रूप अधिक जोड़े, उतने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं और उत्कृष्ट पद में उन्हीं असंख्यात प्रदेशों को पांच गुणा करके, उनमें दो रूप अधिक जोड़े, उतने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। शेष सभी वर्णन संख्यात प्रदेशों के समान जानना चाहिये, यावत् 'अवश्य अनन्त समयों से स्पृष्ट होते हैं - तक कहना चाहिये ।
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२८ प्रश्न - हे भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के अनन्त प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ?
२८ उत्तर - हे गौतम! जिस प्रकार असंख्यात प्रदेशों के विषय में कहा, उसी प्रकार अनन्त प्रदेशों के विषय में भी ( असंख्यात प्रदेश स्पृष्ट होते हैं ऐसा ) जानना चाहिये ।
२९ प्रश्न - हे भगवन् ! अद्धा काल का एक समय धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ?
२९ उत्तर - हे गौतम! सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ।
प्रश्न - अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पष्ट होता है ?
उत्तर
- पूर्वोक्त रूप से जानना चाहिये। इसी प्रकार आकाशास्तिकाय
के प्रदेशों से स्पर्शना कहनी चाहिये ।
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प्रश्न - जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ?
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