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भगवती सूत्र-शः १३ ३. ४ सरकावामों की एक दूसरे से विशालता
महा क्रिया, महा आश्रव और महा वेदना वाले नहीं हैं । 'अधः सप्तम पृथ्वी में रहे हुए नरयिकों की अपेक्षा महा ऋद्धि और महा द्युति वाले हैं, वे अल्प ऋद्धि और अल्प द्युति वाले नहीं है ।
छठी तमः प्रभा पृथ्वी के नरकावास, पांचवी धूमप्रभा पृथ्वी के नरकावासों से अत्यन्त बड़े, अति विस्तार वाले, अति अवकाश वाले हैं और बहुत जीवों से रहित हैं। धूमप्रभा के समान, महा प्रवेश वाले, अति आकीर्ण और अति व्याप्त नहीं है, किंतु विशाल हैं। छठी तमःप्रभा पृथ्वी स्थित नैरयिक, पांचवी धूमप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की अपेक्षा महा कर्म, महा क्रिया, महा आश्रव और महा वेदना वाले है, परन्तु अल्प कर्म, अल्प किया, अल्प आश्रव और अल्प वेदना वाले नहीं है । वे अल्प ऋद्धि और अल्प द्युति वाले हैं, वे महा ऋद्धि और महा द्युति वाले नहीं हैं। पांचवी धूमप्रभा पृथ्वी में तीन लाख नरकावास कहे गये हैं, इत्यादि कथन जिस प्रकार, छठी तमः प्रभा पृथ्वी के विषय में कहा, उसी प्रकार सातों नरक पृथ्वियों के विषय में, परस्पर यावत् रत्नप्रभा तक कहना चाहिये । यावत् "शर्कराप्रभा पृथ्वी के नैरयिक, रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों की अपेक्षा महा ऋद्धि और महा द्युति वाले नहीं हैं। उनकी अपेक्षा अल्प ऋद्धि और 'अल्प द्युति' वाले हैं" - यहां तक कहना चाहिये ।
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३ प्रश्न - हे भगवन् ! रत्नप्रभा पृथ्वी के नैरयिक, पृथ्वी के स्पर्श का किस प्रकार का अनुभव करते हुए रहते हैं ?
३ उत्तर - हे गौतम! वे पृथ्वी के स्पर्श का अनिष्ट यावत् मन के प्रतिकूल अनुभव करते हुए रहते हैं। इस प्रकार यावत् अधः सप्तम पृथ्वी के नैरयिकों के विषय में भी कहना चाहिये। इसी प्रकार अनिष्ट यावत् प्रतिकूल अप् (जल) का स्पर्श यावत् वनस्पति स्पर्श का अनुभव करते हुए रहते हैं ।
प्रश्न - हे भगवन् ! यह रत्नप्रभा पृथ्वी, शर्कराप्रभा पृथ्वी की अपेक्षा मोटाई में सर्वथा मोटी और चारों दिशाओं में लंबाई-चौड़ाई में सर्वथा छोटी है ?
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