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________________ २१७८ भगवती सत्र-श. ५३ उ. ४ नरकावासों की एक दूसरे में विशालता। महा आश्रव वाले, महावेयणतरा-महा वेदना वाले, अप्पकम्मतरा-अल्प कर्म वाले.अप्पकिरियतरा-कायिकी आदि अल्प क्रिया वाले, अप्पासवतरा-अल्प आश्रव वाले, नेरइएहितोनैरयिक जीवों से, अप्पवेयणतरा-अल्प वेदना वाले, अप्पड्डियतरा-अल्प ऋद्धि वाले अप्पज्जुइयतरा-अल्प ति वाले, महड्डियतरा-महा ऋद्धि वाले, महज्जुइयतरा-महा द्युति वाले, पच्चणुभवमाणा-अनुभव करते हुए, अणिठ्ठ-अनिष्ट, अमणाम-मन के प्रतिकूल. पणिहाय-' अपेक्षा, बाहल्लेणं-बाहल्य (मोटाई की अपेक्षा), सम्वखुड्डिया-मब से छोटी, सवंतेसुचारों दिशाओं के विभाग में। .. भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! नरक पृथ्वियां कितनी कही गई हैं ? .. १ उत्तर-हे गौतम ! नरक पश्वियां सात कही गई हैं । यथा-रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी। २--हे भगवन् ! अधःसप्तम पृथ्वी में पांच अनुत्तर और बहुत बड़े नरकावास यावत् 'अप्रतिष्ठान' तक कहे गये हैं । वे नरकावास छठी तमःप्रभा पृथ्वी के नरकावासों से अत्यन्त बड़े, बहुत विस्तार वाले, बहुत अवकाश वाले और बहुत जीवों से रहित हैं, किन्तु महाप्रवेश वाले नहीं हैं । वे अत्यन्त संकीर्ण और व्याप्त नहीं हैं अर्थात् वे नरकावास बहुत विशाल हैं। उन नरकावासों में रहे हुए नैरयिक, छठी तमःप्रभा पृथ्वी में रहे हुए नैरयिकों की अपेक्षा महा कर्म वाले, महा क्रिया वाले, महा आश्रव वाले और महा वेदना वाले हैं। वे तमःप्रभा स्थित नरयिकों की अपेक्षा न तो अल्पकर्म वाले हैं और न अल्प क्रिया, अल्प आश्रव और अल्प वेदना वाले हैं। वे नरयिक अत्यन्त अल्प ऋद्धि वाले और अत्यन्त अल्प द्युति वाले हैं। वे महा ऋद्धि और महा द्यति वाले नहीं हैं। छठी तमःप्रभा पृथ्वी में पांच कम एक लाख नरकावास कहे गये हैं। वे नरकावास अधःसप्तम पृथ्वी के नरकावासों की अपेक्षा अत्यन्त बड़े और महा विस्तार वाले नहीं हैं। वे महा प्रवेश वाले और अत्यन्त आकीर्ण (व्याप्त) हैं। उन नरकावासों में रहे हुए नैरयिक, अधःसप्तम पृथ्वी में रहे हुए नैरयिकों की अपेक्षा अल्प कर्म, अल्प क्रिया, अल्प आश्रव और अल्पवेदना वाले हैं । अधःसप्तम पृथ्वी के नरयिकों को अपेक्षा महाकर्म वाले Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004090
Book TitleBhagvati Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages530
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size9 MB
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